पूज्य श्री गुरुवर चरण में नम्र शत-शत वंदना।
नम्र शत-शत वंदना, नम्र शत-शत वंदना।।
वंदना पंकज-चरण की जो कृपा हम पर करे।
दिनकर सरिस नर रूप में अज्ञान-तम को जो हरे।
दे रहे मूरख हृदय को सत्पंथ की नव चेतना।
नम्र शत-शत वंदना, नम्र
शत-शत वंदना ।।1॥
गुरु कृपा से दूर होता कुपथ
का मन से अँधेरा।
ज्ञान शुचि सम्पन्नता से
ज्योति का उर में बसेरा।
गुरु बिना संभव नहीं है अति
कठिन यह साधना।
नम्र शत-शत वंदना, नम्र शत-शत वंदना ।।2॥
खुद
का एक आदर्श बनकर बाल-जीवन जो सँवारे।
पुष्प-सा
सुरभित बनाकर पार भव सागर करे।
भेद
सद् असद् का बताकर दे रहे जो प्रेरणा।
नम्र शत-शत वंदना, नम्र
शत-शत वंदना ।।3॥
अगम पथ पर कैसे चलना जो
सिखाते रात-दिन।
संकटों में मुस्कुराना
जो बताते रात-दिन।
धैर्य साहस वीरता से
करें संकटों का सामना।
नम्र शत-शत वंदना, नम्र शत-शत वंदना ।।4॥
ऐसे गुरुओं को नमन है जो करें उपकार हम पर।
पुत्र सम निज स्नेह देकर शिष्य जन का पथ सुगम कर।
स्वर्ण-सा हमको बनाया हम करें अभ्यर्चना।
नम्र शत-शत वंदना, नम्र शत-शत
वंदना ।।5॥